पेंसिल की आत्मकथा
- NIKITHA,HINDAVI,DEVI
- Nov 4, 2015
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दूसरों के काम आना मेरी कहानी है। त्याग ही मेरा जीवन है । मैं पहले बहुत लम्बी और सुन्दर थी लेकिन अब तो बोनी बन गई हूँ । मेरे माता-पिता जंगल में ही रहते थे। निर्दय लकड़हारों ने उन्हें काटकर मुझे जन्म दिया। मुझे एक डिब्बे में रखा गया और फिर आँखे खोलने के बाद मुझे पता चला कि मै किसी बड़े से दुकान में थी।
एक आदमी ने मुझे पहले ख़रीदा। उन्होंने मुझे उनके घर के एक दराज के अन्दर रख दिया। कुछ दिन बाद उनकी बेटी ने आकर मुझे उठाया तथा स्कूल लेकर गयी और मुझे एक नयी मालकिन मिल गयी थी। मै अपनी जिंदगी जीने लगी थी। वो एक चित्राकार थी और मै उसकी बहुत मदद करती थी। एक - दो बार उसने मुझे इस्तेमाल करके प्रतियोगिता भी जीती थी । मुझे एक ही चीज़ से डर लगता था ------- शार्पनर! वो बहुत कम बार शार्पनर का इस्तेमाल करती थी। लेकिन मुझे पता था कि लोग मेरे भलाई के लिए ही मुझे छीलते है। एक दिन ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी और मुझे खिड़की के पास रखा गया था। मुझे कुछ बुरा महसूस हुआ और लगा की दाल में कुछ कला है। जब वो स्कूल जा रही थी तब हवा के कारण मैं उसके हाथ से गिर पड़ी। मुझे लगा कि मेरी जिंदगी का अंत आ गया है। भाग्यवश , मैं बस के अंदर ही थी
और बस कंडक्टर ने मुझे उठाकर इस्तेमाल करने लगा। दिन ब दिन मेरी तबियत बिगड़ने लगी और मैं छोटी होती गयी। एक दिन, मैं अपने मालिक के जेब से सड़क पर गिर पड़ी। मैं यहाँ पर नादानी से पड़ी थी और पता नहीं मेरे भविष्य में क्या होगा … "अगर आप एक पेंसिल बनकर दूसरो का सुख नहीं लिख सकते तो रबर बनकर दूसरो का दुःख मिटा सकोगे यही मेरी तमन्ना है !! "
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